बारह ज्योतिर्लिंगों के दर्शन मात्र से बनते बिगड़े काम
हिन्दू सभ्यता के अनुसार जिस जिस स्थान पर भगवन शिव ने अवतार लिया वह स्थान शिव का तीर्थ बन गया. कहा जाता है की शिव ने धरती पर बारह अवतार लिए थे जिसके चलते देश में अलग अलग स्थानो पर बारह ज्योतिलिंग बने हुए है. जिनके दर्शन मात्र से ही भक्तो के बिगड़े काम बन […]
हिन्दू सभ्यता के अनुसार जिस जिस स्थान पर भगवन शिव ने अवतार लिया वह स्थान शिव का तीर्थ बन गया. कहा जाता है की शिव ने धरती पर बारह अवतार लिए थे जिसके चलते देश में अलग अलग स्थानो पर बारह ज्योतिलिंग बने हुए है. जिनके दर्शन मात्र से ही भक्तो के बिगड़े काम बन जाते है. सभी कष्टो से मुक्ति मिल जाती है. भारत में स्थित यह बारह ज्योतिलिंग द्वादश ज्योतिलिंग के नाम से प्रख्यात है। कहा जाता है की भगवन शिव के इन ज्योतिलिंग के दर्शन मात्र से ही हमें हमारे सभी पापो से मुक्ति मिलती है.
श्री सोमनाथ (सौराष्ट्र):-
भारतीय सभ्यता में कहा जाता है की सोमनाथ पृथ्वी का सर्वप्रथम शिवलिंग है. सोमनाथ गुजरात के सौराष्ट्र में विराजमान है. सोमनाथ मंदिर को कई बार तोडा और बनाया जा चूका है. कहा जाता है की 1022 ई. में महमूद गजनबी ने इस मंदिर में जो आतंक मचाया था वह सबसे भयंकर था. सोमनाथ मंदिर पर कई बार आतंकियों ने भी हमला किया. भगवन शिव की षच्ची भक्ति और निष्ठां से भक्तो ने सोमनाथ को पुनः व्यवस्थित किया। सोमनाथ मंदिर की सम्पूर्ण महिमा का बखान स्कन्दपुराणादि,श्रीमद्भागवत और महाभारत में बखूबी से किया गया है.
श्री मल्लिकार्जुन ( कुर्नूल ) :-
आंध्रप्रदेश के कुर्नूल क्षेत्र में आने वाले कृष्णा जिले की कृष्ण नदी की किनारे विराजमान मल्लिकार्जुन अपने भक्तो की समस्यों को हरते है. कुर्नूल क्षेत्र को दक्षिण का कैलाश पर्वत भी कहा जाता है. मल्लिकार्जुन शेल पर्वत पर स्थित है. कहा जाता है की जिस समय भगवन गणेश और कार्तिकेय के बीच विवाह की एक प्रतियोगिता रखी गई थी की जो पृथ्वी की परिक्रमा पहले करेगा उसका विवाह सर्वप्रथम होगा. बुद्धि केर दाता भगवान गणेश ने अपने माता पिता की परिकमा कर अपनी समझदारी का परिचय दिया। जब कार्तिकेय को इस बात की जानकारी हुई तो वह रूठ कर क्रोच पर्वत चले गए और वहा रहने लगे. तब शिव पार्वती कार्तिकेय से मिलने क्रोच पर्वत पर पकट हुए तब से उस स्थान का नाम मल्लिकार्जुन पड़ गया.
श्री महाकालेश्वर (उज्जैन) :-
उज्जैन के शिप्रा नदी के तट पर स्थित महाकालेश्वर विराजमान है. उज्जैन को सर्वपथम अवंतिकापुरी के नाम से जाना जाता था. समस्त ज्योतिलिगो में उज्जैन का ज्योतिलिंग विशेष महत्व रखता है. इस लिए कहा जाता है की दुष्टो का संहार करने के लिए वेदप्रिय के चार पुत्रो ने एक शिवलिंग की स्थापना की और सभी के साथ मिलकर उस शिवलिंग की पूजा अर्चना करने लगे. उस शिवलिंग में से स्वयं भगवान शिव प्रकट होकर दुष्टो का संहार किया और महाकाल के नाम से प्रसिद्ध हुए. भगवान शिव ने दुष्टो का वध कर उनकी राख को अपने शरीर पर लगाया तभी से महाकाल की भस्म आरती की जाती है.
श्री ओंकारेश्वर-श्री ममलेश्वर ( ॐकारेश्वर ) :-
कहा जाता है की ओकारेश्वर की स्थापना स्वतः हुई थी.ॐकारेश्वर को ममलेश्वर भी कहा जाता है जो मध्यप्रदेश के ओंकारेश्वर में विराजित है. जिस समय पूरी पृथ्वी जलमग्न हो गई थी तब माँ नर्मदा के शांत होने पर नर्मदा तट पर शिवलिंग प्रकट हो गया था.
श्री केदारनाथ (उत्तराखंड) :-
केदार नाथ उत्तराखंड के हिमालय की चोटियों पर विराजित है.केदारनाथ का बखान वेदो में की गई है.कहा जाता है की पांडवो ने उत्तराखंड में मंदिरकी स्थापना की थी. कहा जाता है की जिस समय विष्णु के नर नारायण की का अवतार हुआ था तो उन्होंने इस मंदिर में शिवलिंग की स्थापना की थी और भगवान शिव प्रसन्न हो कर ज्योति रूप में वहा विराजित हुए थे.
श्री विश्वनाथ (उत्तर प्रदेश) :-
गर्न्थो के अनुसार हिन्दुओ का सबसे पवित्र और अहम तीर्थ गंगा किनारे स्थिर श्री विश्वनाथ ज्योतिलिंग है. कहा जाता है की जो भी व्यक्ति यहाँ अपने प्राण त्यागता है वह सीधे स्वर्ग में जाता है. इस तीर्थ की किसी भी व्यक्ति ने स्थापना नहीं की थी बल्कि भगवान शिव स्वयं ज्योतिलिंग के रूप में प्रकट हुए थे.
श्री त्र्यम्बकेश्वर (महाराष्ट्र) :-
त्र्यम्बकेश्वर नासिक के समीप गोदावरी नदी के किनारे स्थापित है. पुराणो के अनुसार त्र्यम्बकेश्वर में भगवान ब्रह्मा,विष्णु ओए स्वयं भगवान शिव का वास है जो सभी भक्तो की अरज को स्वीकारते है. कहा जाता है की जिस समय गौतम ऋषि पर गोहत्या का आरोप लगाया गया था, तब गौतम ऋषि ने मिटटी का शिवलिंग बनाया और पूजा करने लगे. भगवान शिव गौतम ऋषि से प्रसन्न होकर ज्योति रूप में वहा प्रकट हुए और उन्हें गोहत्या के पाप से मुक्त कराया.
श्री वैद्यनाथ (झारखंड) :-
शिवशंकर की महिमा गाते हुए श्रावण मास में सुलतानगंज से गंगाजल कावड़ में भरकर वैद्यनाथ को चढ़ाते है. जिससे उनकी सभी मनोकामनाए पूर्ण होती है. इस ज्योतिलिंग की स्थापना रावण ने की थीजिस समय रावण भगवान शिव को प्रसन्न कर लंका ले जा रहजा था तो नियम के विरुद्ध रावण ने शिवलिंग को जमीं पर राख दिया और पुनः उठा नहीं सका. तभी से यह ज्योतिलिंग सभी भक्तो की आस्था का प्रतीक है.
श्री नागेश्वर (गुजरात) :-
गोमती द्वारका से लगभग पंद्रह मिल दूर नागेश्वर ज्योतिलिंग स्थापित हैं. नागेश्वर ज्योतिलिंग की कथाये शस्त्रों में इसका बखान किया गया हैं. कहा कहा जाता हैं एक शिव भक्त था जो एक समय नौका से यात्रा करने के लिए समुद्र मार्ग में निकला. रास्ते में उसपर आकर्मण कर दिया और उसे बंदी बना लिया. लेकिन फिर भी उसने शिव भक्ति नहीं छोटी और स्वयं शिव जी उसके सामने प्रकट हो कर भक्त की विपदा हरी और ज्योतिर्लिंग रूप में स्थापित हो गए.
श्री रामेश्वर(तमिलनाडु) :-
रामेश्वरम तमिलनाडु में स्थापित हैं. कहा जाता हैं की रामेश्वरम की स्थापना दो कारणों से हुई थी. मर्यादा पुरषोत्तम श्री राम ने ने जब लंका विजय प्राप्ति करने के लिए आगे बड़े थे तो श्री राम ने ज्योतिर्लिंग की स्थापना की थी. साथ ही कहा जाता हैं. की जिस समय श्री राम ने रावण का वध कर के वापस अयोध्या लोट रहे थे तब ब्रम्ह हत्या के पाप से मुक्ति के लिए इस मंदिर का निर्माण किया था.
श्री घुश्मेश्वर(महाराष्ट्र) :-
घुश्मेश्वर ज्योतिलिंग के दर्शनमात्र से ही भक्तो के बिगड़े काम बनते हैं. घुश्मेश्वर ज्योतिलिंग महाराष्ट्र जिले में स्थापित हैं. कहा जाता हैं की इस ज्योतिलिंग के दर्शन मात्र से ही जन्म जन्मांतर के दुःख दर्द पाप मिट जाते हैं. घुश्मेश्वर ज्योतिलिंग की स्थापना के विषय में कहा जाता हैं की देवगिरि पर्वत के पास एक सुधर्मा नामक ब्राम्हण रहता था. उनकी संतान न होने के कारण ब्राम्हण और उनकी पत्नी हमेशा दुखी रहते थे. सुधर्मा की पत्नी सुदेहा ने उनकी शादी अपनी बहन से करवा दी. लेकिन संतान पुत्र प्राप्ति के के बाद सुदेहा ने बच्चे की हत्या कर दी. लेकिन इस दुविधा में भी घुश्मा ने शिव भक्ति नहीं छोड़ी और निरंतर शिव भक्ति करती रही. भगवान शिव ने प्रसन्न होकर उनके पुत्र को वापस जीवित कर दिया. और ज्योतिलिंग के रूप में घुश्मा का नाम अमर कर के घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग के नाम से प्रसिद्ध हुए.
श्री भीमेश्वर(महाराष्ट्र) :-
भीमेश्वर ज्योतिलिंग के बारे में कई लोगो की अलग अलग राय हैं. भीमेश्वर ज्योतिलिंग को भीमाशंकर ज्योतिलिंग भी कहा जाता हैं. कलाई लोगो का मानना हैं की उधमसिंह जिले के उज्जनक गाव में शिव मंदिर को ही भीमेश्वर ज्योतिलिंग मानते हैं. कहा जाता हैं की भीम नाम के राक्षश का जन्म कुंभकर्ण और कर्कटी से हुआ था. भीम ने ब्रम्हा को प्रसन्न करने के लिए एक हजार वर्ष तक कठोर टप किया था. तब कही ब्रम्हा जी ने भीम को दर्शन दिए और वरदान स्वरूप समस्त प्राणियों में शक्तिशाली होने का आशीर्वाद दिया. जिसकी सहायता से भीम ने धरती पर हाहाकार मचा दिया.भीम ने शिव भक्त राजा सुदक्षिण को भी बंदी बना लिया. सुदक्षिण ने शिव की प्रतिमा बनाकर कारागाह में पूजा अर्चना करने लगे. जिससे शिव ने प्रसन्न हो कर भीम का वध किया और भीमाशंकर के नाम से प्रख्यात हुए.